Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala
View full book text
________________
उपशमनाकरण
५७
-
-
--
--
--
-
--
--
--
----
----
--
-
एवित्थी संखतमे गयम्मि, घाईण संखवासाणि । संखगुणहाणि एत्तो, देसावरणाणुदगराई ॥४५॥ ता सत्तण्हं एवं, संखतमे संखवासितो दोण्हं । बिइयो पुण ठिइबंधो, सव्वेसिं संखवासाणि ॥४६॥ छस्सुवसमिजमाणे, सेक्का उदयठिई पुरिससेसा। समऊणावलिगदुगे, बद्धावि य तावदद्धाए ॥४७॥ तिविहमवेओकोहं, कमेण सेसेवि तिविहतिविहे वि। पुरिससमा संजलणा, पढमठिई आलिगा अहिगा। लोभस्स बेतिभागा, बिइय तिभागोत्थ किट्टि
करणद्धा। एगफड्डगवग्गण-अणंतभागो उ ता हेट्ठा ॥४९॥ अणुसमयं सेढीए, असंखगुणहाणिजा अपुवाओ तविवरीयं दलियं, जहन्नगाई विसेसूणं ॥५०॥ अणुभागो गंतगणो, चाउम्मासाइ संखभागूणो। मोहे दिवसपुहुत्तं, किट्टीकरणाइसमयम्मि ॥५१॥ भिन्नमुहुत्तो संखिजेसु य, घाईण दिणपुहुत्तं तु । वाससहस्सपुहुत्तं, अंतोदिवसस्स अंते सिं ॥५२॥ वाससहस्सपुहुत्ता, बिवरिस अंतो अघाइकम्माणं। लोभस्स अणुवसंतं किट्टीओ जं च पुव्वुत्तं ५३

Page Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82