Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala

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Page 67
________________ ५६ कर्मप्रकृति ठिइकंडगमुक्कस्सं पि, तस्स पल्लस्स संखतमभागो। ठिइबंधबहुसहस्से, सेक्केकं जं भणिस्सामो ॥३६॥ पल्लदिवड्ढविपल्लाणि, जाव पल्लस्स संखगुणहाणी। मोहस्स जाव पल्लं, संखेज्जइभागहाऽमोहा॥३७॥ तो नवरमसंखगुणा, एकपहारेण तीसगाणमहो । मोहे वीसग हेट्ठा य तीसगाणुप्पि तइयं च ॥३८॥ तो तीसगाणमुप्पिं च, वीसगाई असंखगुणणाए। तईयं च विसगाहि य, विसेस महियं कमेणेति ३९ अहुदीरणा असंखेज-समयबद्धाण देसघाइ स्थ । दाणंतराय मणपजवं च, तो ओहिदुगलाभो ४० सुयभोगाचक्खूओ, चक्खू य ततो मई सपरिभोगा। विरियं च असेढिगया, बंधंति उ सव्वघाईणि ४१ संजमघाईणंतरमेत्थ उ, पढमट्टिई य अन्नयरे । संजलणावेयाणं, वेइजंतीण कालसमा ॥४२॥ दुसमयकयंतरे आलिगाण, छण्हं उदीरणाभिनवे। मोहे एकट्ठाणे बंधुदया संखवासाणि ॥४३॥ संखगुणहाणिबंधो, एत्तो सेसाणसंखगुणहाणी। पउवसमए नपुंसं, असंखगुणणाइ जावंतो॥४४॥

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