Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala

View full book text
Previous | Next

Page 73
________________ कर्मप्रकृति मिच्छत्तमीसणंताणुबंधि - असमत्तथी गिद्धीणं । तिरिउदगंताण य, बिइया तइया य गुणसेढी १३ अंतरकरणं होहि त्ति, जाय देवस्स तं मुहुत्तो । अहकसायाणं छण्हं पि य नोकसायाणं ॥ १४ ॥ हस्सठि बंधित्ता, अद्धा जोगाइठिइनिसेगाणं | उक्कस्सपए पढमोदयम्मि, सुरनारगाऊणं ॥ १५ ॥ अद्धाजोगुकोसो, बंधित्ता भोग भूमिगेसु लहुं । सव्वप्पजीवियं वज्जइत्तु, ओवट्टिया दोन्हं ॥ १६ ॥ दूभगणाएजाजस - गइदुगअणुपुव्वितिगसनीयाणं । दंसणमो हक्खवणे, देसविरइविरइगुणसेढी ॥१७॥ संघयणपंचगस्स य, बिइयाई तिन्नि होंति गुणसेढी आहारगउज्जोयाणुत्तरतणु अप्पमत्तस्स ॥ १८ ॥ बेइं दिय थावरगो कम्मं, काऊण तस्समं खिप्पं । आयावस्स उ तव्वेइ, पढमसमयम्मि वट्टंतो ॥ १९ ॥ पगयं तु खवियकम्मे, जहन्नसामी जहन्नदेवठि । भिन्नमुहुत्ते से से, मिच्छत्तगतो अतिकिलिट्ठो ॥२०॥ कालगएगिंदियगो, पढमे समये व मइयावरणे । केवलदुगमणपज्जव चक्खुअचक्खूण आवरणा २१ ६२

Loading...

Page Navigation
1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82