Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala

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Page 72
________________ उदयप्रकरण अणुभागुदओ वि जहन्न, नवरि आवरणविग्ध वेयाणं। संजलणलोभसम्मत्ताण, य गंतूणमावलिगं ॥५॥ अजहन्नाणुकोसा, चउत्तिहा छण्ह चउब्विहा मोहे आउस्स साइअधुवा, सेसविगप्पा य सव्वेसिं ॥६॥ अजहन्नाणुकोसो, सगयालाए चउत्तिहा चउहा। मिच्छत्ते सेसासिं, दुविहा सव्वे य सेसाणं ॥७॥ सम्मनुप्पत्ति सावय, विरए संजोयणाविणासे य । दंसणमोहक्खवगे, कसायउवसामगुवसंते ॥८॥ खवगे य खीणमोहे, जिणे य दुविहे असंखगुणसेढी उदओ तविवरीओ, कालो संखेज गुणसेढी॥९॥ तिन्नि वि पढमिल्लाओ, मिच्छत्तगएवि होज अन्नभवे । पगयं तु गुणियकम्मे, गुणसेढीसीसगाणुदये ॥१०॥ आवरणविग्घमोहाण, जिणोदयइयाण वावि नियगंते । लहुखवणाए ओहीण-गोहिलद्धिस्स उक्स्सो ११ उवसंतपढमगुणसेढीए निदादुगस्स तस्सेव । पावइ सीसगमुदयंति, जायदेवस्स सुरनवगे॥१२॥

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