Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala

View full book text
Previous | Next

Page 65
________________ कर्मप्रकृति मिच्छत्तुदए खीणे, लहए सम्मत्तमोवसमियं सो। लंभेण जस्स लब्भइ, आयहियमलद्धपुव्वं जं १८ तं कालं बीयठिइं, तिहाणुभागेण देसघाइ स्थ। सम्मत्तं सम्मिस्सं, मिच्छत्तं सव्वघाइओ ॥ १९ ॥ पढमे समए थोवो, सम्मत्ते मीसए असंखगुणो । अणुसमयमवि य कमसो, भिन्नमुहुत्ता हि विज्झाओ ॥ २०॥ ठिइरसघाओ गुणसेढी, विय तावं पि आउवजाणं। पढमठिइए एग-दुगावलिसेसम्मि मिच्छत्ते॥२१॥ उवसंतद्धाअंते, विहिणाओकड्डियस्स दलियस्स। अज्झवसाणणुरूव-स्सुदओतिसु एकयरयस्स २२ सम्मत्तपढमलंभो, सवोवसमा तहा विगिट्ठो य । छालिगसेसाइ परं, आसाणं कोइ गच्छेजा २३ सम्मद्दिट्ठी जीवो, उवइटुं पवयणं तु सदहइ । सदहइ असब्भावं, अजाणमाणो गुरूनियोगा २४ मिच्छद्दिट्ठी नियमा, उवइटुं पवयणं न सद्दहइ । सदहइ असब्भावं, उवइटुं वा अणुवइटुं ॥२५॥ सम्मामिच्छदिट्ठी, सागारे वा तहा अणागारे । अह वंजणोग्गहम्मि य, सागारे होई नायव्वो २६

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82