Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala

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Page 61
________________ कर्मप्रकृति से काले सम्मत्तं, ससंजमं गिण्हओ य तेरसगं । सम्मत्तमेव मीसे, आऊण जहन्नगठिईसु ॥७२॥ पोग्गलविचागियाणं,भवाइसमये विसेसमवि चासिं आइतणूणं दोण्हं, सुहुमो वाउ य अप्पाऊ ॥७३॥ बेईदिय अप्पाउग निरय, चिरट्ठिई असन्निणो वावि अंगोवंगाणाहारगाए, जइणोप्पकालम्मि ॥७॥ अमणो चउरंसुसभाण-प्पाऊ सगचिरट्टिई सेसे । संघयणाण यमणुओ, हुंडुवघायाणमवि सुहुमो७५ सेवस्स बिइंदिय, बारसवासस्स मउयलहगाणं । सनि विसुद्धाणाहारगस्स, वीसा अइकिलिट्रे ७६ पत्तेयमुरालसमं, इयरं हुंडेण तस्स परघाओ। अप्पाउयस्स आया-वुजोयाणमवि तजोगो ७७ जा नाउजियकरणं, तित्थगरस्स नवगस्स जोगते । कक्खडगुरूणमंथे, नियत्तमाणस्स केवलिणो ७८ सेसाण पगइवेई, मज्झिमपरिणामपरिणओहोजा। पच्चयसुभासुभा विय, चिंतिय नेओ विवागे य ७९ पंचण्हमणुकोसा, तिहा पएसे चउबिहा दोण्हं । सेसविगप्पा दुविहा, सव्वविगप्पा य आउस्स ८०

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