Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala

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Page 52
________________ अपवर्तनाकरण निव्वाघाएणेवं वाघाए, संतकम्महिगबंधो । आवलिअसंखभागादि, होइ अइत्थावणा नवरं ३ उव्वट्टंतो य ठिहं, उदयावलिबाहिरा ठिइविसेसा । निक्खिवइ तइअभागे, समयहिए सेसम इवई ॥४॥ वड्डइ तत्तो अतित्थावणाउ, जावालिगा हवइ पुन्ना । ता निक्खेवो समयाहिगालिग दुगूण कम्मठिई ५ वाघाए समऊणं कंडगमुक्कस्सिया अइत्थवणा । डायठि किंचूणा, ठिइ कंडुकस्सगपमाणं ॥६॥ चरमं नोव्वट्टिज्जह, जावाणंताणि फड्डगाणि तत्तो । उस्सकिय ओकss, एवं उब्वट्टणाईओ ॥ ७ ॥ थोवं पएसगुणहाणि, अंतरं दुसु जहन्ननिक्खेवो । कमसो अनंतगुणिओ, दुसु वि अइत्थावणा तुला ॥८॥ वाघाएणणुभाग - कंडग मेक्काए वग्गणाऊणं । उकोसो निक्खेवो, ससंतबंधो य सविसेसो ॥९॥ आबंधा उक्कड्डइ, सव्वहिमोकडणा ठिइरसाणं । किट्टिवज्जे उभयं, किट्टिसु ओवट्टणा एका ॥ १०॥ ॥ उद्वर्तना - अपवर्तन करणे समाप्ते || ४१

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