Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala
View full book text
________________
कर्मप्रकृति
इगविगलिंदियजोग्गा, अट्ठ अपजत्तगेण सह
तासिं। तिरियगइसगं नवरं, पंचासीउदहिसयतु॥१०८॥ छत्तीसाए सुभाणं, सेढिमणारुहिय सेसगविहीहिं । कट्ट जहन्नं खवणं, अपुवकरणालिया अंते॥१०९ सम्मदिट्ठिअजोग्गाण,सोलसण्हं पि असुभपगईणं। थीवेएण सरिसगं, नवरं पढमं तिपल्लेसु ॥११०॥ नरतिरियाण तिपलस्संते, ओरालियस्स पाउग्गा। तित्थयरस्स य बन्धा जहन्नओ आलिगं गंतुं १११
॥ संक्रमणकरणं समाप्तम् ॥ उद्वर्तनाकरण-अपवर्तनाकरण
उव्वट्टणा ठिईए, उदयावलियाए बाहिरठिईणं । होइ अबाहा अइत्थावणाउ जा वालिया हस्सा॥१॥ आवलियअसंखभागाइ, जाव कम्मठिइत्ति
निक्खेवो। समउत्तरालिगाए, साबाहाए भवे ऊणे ॥२॥

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82