Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala

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Page 50
________________ संक्रमणकरण ३९ अयरछावट्ठिदुगं, गालिय थीवेयथीणगिद्धितिगे। सगखवणहापवत्तस्संते, एमेव मिच्छत्ते ॥९९॥ हस्सगुणसंकमद्धाए, पूरयित्ता समीससम्मत्तं । चिरसम्मत्ता मिच्छत्त-गयस्सव्वलणथोगे सिं १०० संजोयणाण चउरुवसमित्तु, संजोयइत्तु अप्पद्धं । अयरच्छावट्ठिदुगं, पालिय सकहप्पवत्तंते ॥१०१॥ अट्ठकसायासाए य,असुभधुवबंधिअत्थिरतिगे य। सव्वलहुं खवणाए, अहापवत्तस्स चरिमम्मि ॥१०२ पुरिसे संजलणतिगे य, घोलमाणेण चरमबद्धस्स। सगअंतिमे असाएण, समा अरई य सोगो य १०३ वेउव्वेकारसगं, उव्वलिय बंधिऊण अप्पद्धं । जिट्ठठिई निरयाओ, उवट्टित्ता अबंधित्तु ॥१०४॥ थावरगयस्स चिरउव्वलणे, एयस्स एवमुच्चस्स । मणुयदुगस्स य तेउसु,वा उसु वा सुहुमबद्धाणं१०५ हस्सं कालं बन्धिय, विरओ आहारसत्तगं गंतुं । अविरइ महुव्वलंतस्स,तस्स जाथोवउव्वलणा१०६ तेवट्ठिसयं उदहीण, स चउपल्लाहियं अबन्धित्ता। अंते अहप्पवत्तकरणस्स, उज्जोवतिरियदुगे॥१०७॥

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