Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala

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Page 33
________________ कर्मप्रकृति एकेकम्मि कसायोदयम्मि, लोगा असंखिया होति। ठिइबंधठाणेसु वि, अज्झवसाणाण ठाणाणि॥५२॥ थोवाणि कसाउदये, अज्झवसाणाणि सव्वडहरम्मि बिइयाइ विसेसहियाणि, जाव उक्कोसगं ठाणं ५३ गंतूणमसंखेने लोगे, दुगुणाणि जाव उक्कोसं । आवलिअसंखभागो, नाणागुणवुड्डिठाणाणि ५४ सव्वासुभपगईणं, सुभपगईणं विवजयं जाण । ठिइबंधठाणेसु वि आउगवजाण पगडीणं॥५५॥ पल्लासंसियभागं, गंतुं दुगुणाणि आउगाणं तु । थोवाणि पढमबंधे, बिइयाइ असंखगुणियाणि५६ घाईणमसुभवण्णरस-गंधफासे जहन्नठिइबंधे। जाणज्झवसाणाई, तदेगदेसो य अन्नाणि ॥५७॥ पल्लासंखियभागो जावं बिइयस्स होइ बिइयम्मि । आ उकस्सा एवं, उवघाए वा वि अणुकडि॥५०॥ परघाउन्जोउस्सासाय-वधुवनामतणुउवंगाणं । पडिलोमं सायस्स उ, उक्कोसे जाणि समऊणे॥५९॥ ताणि य अन्नाणेवं, ठिइबंधो जा जहन्नगमसाए। हेठुजोयसमेवं, परित्तमाणीण उ सुभाणं ॥६॥

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