Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala

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Page 37
________________ कर्मप्रकृति पल्लासंखियभागं, गंतुं दुगुणाणि जाव उक्कोसा। नाणंतराणि अंगुलमूल-च्छेयणमसंखतमो॥ ठिइदीहयाइकमसो,असंखगुणियाणिणंतगुणणाए पढमजहण्णुकोसं, बितिय जहन्नाइ आ चरमा ॥ बंधंता धुवपगडी,परित्तमाणिग सुभाण तिविहरसं। चउ तिग बिट्टाणगयं, विवरीयतिगं च असुभाणं॥ सव्वविसुद्धा बंधंति, मज्झिमा संकिलिट्टतरगाय। धुवपगडिजहन्नठिई, सव्वविसुद्धा उ बंधंति ॥ तिहाणे अजहण्णं, बिट्टाणे जेट्टगं सुभाण कमा। सट्टाणे उ जहन्नं, अजहन्नुकोसमियरासि ॥ थोवा जहनियाए, होति विसेसाहिओदहिसयाई । जीवा विसेसहीणा, उदहिसयपुहुत्तमो जाव ॥ एवं तिट्ठाणकरा बिट्ठाणकरा य आ सुभुक्कोसा । असुभाणं बिट्ठाणे, तिचउट्ठाणे य उकोसा ॥ पल्लासंखियमूलानि, गंतुं दुगुणा य दुगुणहीणाय। नाणंतराणि पल्लस्स, मूलभागो असंखतमो ॥ अणगारप्पाउग्गा, बिट्ठाणगया उ दुविहपगडीणं । सागारा सव्वत्थ वि, हिट्ठा थोवाणि जवमज्झा॥

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