Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala

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Page 46
________________ संक्रमणकरण तं दलियं सट्टाणे, समए समए असंखगुणियाए । सेढीए परठाणे, विसेसहाणीए संछुभइ ॥६३॥ जं दुचरमस्स चरिमे अन्नं संकमइ तेण सव्वं पि । अंगुलअसंखभागेण हीरए एस उव्वलणा ॥६४॥ चरममसंखिजगुगुं, अणुसमयमसंखगुणियसेढीए। देइ परहाणेवं, संछुभंतीणमवि कसिणो ॥६५॥ एवं मिच्छद्दिट्ठिस्स, वेयगं मीसगं तओ पच्छा। एगिदियस्स सुरदुगमओ,सवेउव्विणिरयदुगं॥६६ सुहुमतसेगोत्तुत्तममओय,णरदुगमहानियट्टिम्मि। छत्तीसाए णियगे, संजोयणदिट्ठिजुअले य॥६७॥ जासिणबंधोगुणभव-पञ्चयओ तासिहोइविज्झाओ अंगुलअसंखभागेण-वहारो तेण सेसस्स ॥६८॥ गुणसंकमो अबज्झंतिगाण, असुभाणपुवकरणाई बंधे अहापवत्तो, परित्तिओ वा अबंधे वि॥६९॥ थोवोऽवहारकालो, गुणसंकमेण असंखगुणणाए । सेसस्सहापवत्ते, विज्झाउव्वलण नामे य ॥७॥ पल्लासंखियभागेण-हापवत्तेण सेसगवहारो। उव्वलणेण वि थिबुगो,अणुइन्नाएउ जंउदए॥७१

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