Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala

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Page 40
________________ संक्रमणकरण अट्ठचउरहियवीसं, सत्तरसं सोलसं य पन्नरसं । वजिय संकमठाणाई, होति तेवीसइं मोहे ॥१०॥ सोलस बारसगट्ठग, वीसग तेवीसगाइगे छच्च । वजिय मोहस्स पडिग्गहा उ अट्ठारस हवंति॥११॥ छव्वीससत्तवीसाण, संकमा होइ चउसु ठाणेसु । वावीसपन्नरसगे, एकारसइगुणवीसाए ॥१२॥ सत्तरस एकवीसासु, संकमो होइ पन्नवीसाए । नियमा चउसु गइसु, नियमा दिट्ठि कए तिविहे१३ बावीसपन्नरसगे, सत्तगएकारसिगुणवीसासु । तेवीसाए नियमा, पंच वि पंचिंदिएसु भवे॥१४॥ चोदसगदसगसत्तग-अट्ठारसगे य होइ बावीसा। नियमा मणुयगईए, नियमा दिट्ठी कए दुविहे १५ तेरसगनवगसत्तग-सत्तरसगपणगएक्कवीसासु । एक्कावीसा संकमह, सुद्धसासाणमीसेसु ॥१६॥ एत्तोअविसेसा संकमंति, उवसामगे व खवगेवा। उवसामगेसु वीसा य, सत्तगे छक्क पणगे य॥१७॥ पंचसु एगुणवीसा, अट्ठरस पंचगे चउक्के य । चाउदस छसुपगइसु,तेरसगंछक्कपणगम्मि॥१८॥

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