Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala

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Page 43
________________ कर्मप्रकृति मूलठिई अजहन्नो, सत्तण्ह तिहा चउव्विहो मोहे । सेस विगप्पा तेसिं, दुगप्पा संकमे होति ॥३६॥ धुवसंतकम्मिगाणं, तिहा चउद्धा चरित्तमोहाणं । अजहन्नो सेसेसु य, दुहेतरासिं च सव्वत्थ ॥३७॥ बन्धाओ उकोसो जासि, गंतूण आलिगं परओ। उकोससामिओ, संकमण जासिं दुगंतासिं ॥३८॥ तस्संतकम्मिगो बंधिऊण, उक्कोसगं मुहुत्तंतो। सम्मत्तमीसगाणं, आवलिया सुद्धदिट्ठी उ ॥३९॥ दसणचउकविग्घिावरणं,समयाहिगालिगो छउमो। निदाणावलिगदुगे,आवलियअसंखतमसेसे॥४०॥ समयाहिगालिगाए, सेसाए वेअगस्स कयकरणे । सक्खवगचरमखंडग-संछुभणेदिट्ठिमोहाणं ॥४१॥ समउत्तरालिगाए, लोभे सेसाइ सुहुमरागस्स । पढमकसायाण, विसंजोयणसंछोभणाए उ॥४२॥ चरिम सजोगेजाअस्थि,तासि सा चेव सेसगाणंतु। खवगकमेण अनियट्टि-बायरो वेयगो वेए ॥४३॥ मूलुत्तरपगइगतो, अणुभागे संकमो जहा बंधे । फड्डगनिदेसो सिं, सम्वेयरघायऽघाईणं ॥४४॥

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