Book Title: Karmpath
Author(s): Premnarayan Tandan
Publisher: Vidyamandir Ranikatra Lakhnou

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Page 9
________________ अगले तीन एकांकी गद्य में ही हैं । पहले 'रोगी के बच्चे' में भावुक साहित्यिक के रोग-ग्रस्त होने पर उसके पारिवारिक जीवन का एक कारुणिक दृश्य है । रोगी के तीन बच्चे है । दश वर्ष की शीला ने माँ-बाप से भोजन की कमी पर दार्शनिकता प्रकट करना सीखा है, अपने छोटे भाई सतीश को वह समझाती है और फिर दोनों का शंका-समाधान उनका बड़ा भाई राकेश करता है । वार्तालाप में बाल-मनोविज्ञान की रक्षा बड़े कौशल से की गई है। इनके वार्तालाप की पृष्ठभूमि में पड़ोसी संपन्न परिवारों के बच्चों के ढंग का रंग चढ़ाकर लेखक ने इन तीनों पात्रों का चित्रण बहुत कारुणिक कर दिया है । बच्चे भगवान को किस प्रलार समझें, उन्हें भगवान से आशा और सांत्वना मिले, यहीं पर इस एकांकी की चरम सीमा है शीला-भैया, तुम क्या माँगोगे राम जी से ? ' रासेश-मैं ! मै तो यही माँगूगा कि हमारे बाबू जी को अच्छा कर दो। वे.......... वे अच्छे हो जायेंगे तो हमारे लिए मिठाईकपड़े सभी कुछ ले पाएंगे। [ सतीश और शीला राकेश की ओर देखते हैं । पश्चात, दोनों एक दूसरे की ओर देखते है ।] शीला-(कुछ सोचती हुई) ठी भैया में भी यही माँगूगी। सतीश-चलो, चलो मैं भी यही माँगूगा । यहीं नाटक समाप्त होता है और दर्शक भी यही माँगने लगत हैं। ' यदि यह एकांकी बालकों के विद्यालय में अभिनय करने योग्य है, तो इसके बाद 'लेखक की पत्नी' का अभिनय बालिका विद्यालय में होना

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