Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 4
________________ प्रास्ताविक हुम्मचके एक शिलालेखमें अभयचन्द्रको चैत्यवासी कहा गया है । अभयचन्द्रके समाधिमरणसे सम्बन्धित उपर्युक्त शिलालेखमें कहा गया है कि वह छन्द, न्याय, निघण्टु, शब्द, समय, अलंकार, भूचक्र, प्रमाणशास्त्र आदिके प्रकाण्ड पण्डित थे । इसी तरह श्रुतगनिने परभागमसार ( १२६३ शक ) के अन्त में अपना परिचय देते हुए लिखा है-- "सहागम-गरमागम-तुमागम-णिरवसेसवेदी हु । विनिद-सबलगणवादी जय चिरं अभयमूरि-सिद्धती' ।" इसरो भी अभय चन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके व्यक्तित्व पर प्रकाश पड़ता है। कर्मप्रति सम्मान और हिन्दी अनु", मैंने सन् १९६५ में किया था। कई कारणों से यह अब प्रकाशित हो पायी है। इसके सम्पादन प्रकाशनमें जिनका भी योगायोग है, उन सबका आभारी हूँ। 'सत्यशासन-परीक्षा' तथा 'यशस्तिलकका सांस्कृतिक अध्ययन' के बाद पुस्तक रूपमें प्रकाशित यह मेरी तीसरी कृति है । आगा हूँ विज-जन इसमें रहीं श्रुटियोंकी ओर ध्यान दिलाते हुए, इसका समुचित मूल्यांकन करेंगे। वाराणसी ३० सितम्बर १९६८ --गोकुलचन्द्र जैन GE.C. VIII Nagar t! 10. 46 जैन शिक्षालग्न संमद भाग तेख ६६७

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