Book Title: Karmaprakruti Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 3
________________ कर्मप्रकृति "कृतिरियम् अभयचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्तिनः ।" अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रावतीके विषयमें कई शिलालेखोंसे जानकारी मिलती है। मूल संघ, देशिय गण, पुस्तक गच्छ, कोण्डकुन्दान्वयको गलेश्वरी शाखाके श्रीसमुदायमें माघनन्दि भट्टारक हुए। उनके नेमिचन्द्र भट्टारका नधा अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ये दो शिष्य थे। अभमचन्द्र बालचन्द्र पंजितके श्रुतगुरु थे ।' हलेबीद्ध के एक सस्कृत और कन्नड मिश्रित शिलालेखमें अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवकि समाविमरणका उल्लेख है--यह लेख शक संवत् १२०१ - १२७१ ईसघीका है। हलेबीई के ही एक अन्य शिलालेखमें अभयचन्द्र के प्रिय शिष्य बालचन्म के समाधिमरणका उल्लेख है। यह लेख शक संवत् ११९७, सन् १२७४ ई सका है। इन दोनों अभिलेखोंसे अभयवन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीका समय ईसाको सेरहवीं शती प्रमाणित होता है। वे सम्भवतया १३वीं शतीके प्रारम्भमें हुए और ७९ वर्ष तक जीवित रहे। __ सबन्नूरके एक शिलालेख ( शक १३०६ ) में श्रुतमुनिको अभयचन्द्रका शिष्य बताया गया है। भारंगीके एक शिलालेखमें कहा गया है कि राय राजगुरु मण्डलाचार्य महावाद नादीदधर रायवादि पितामह अभयचन्द्र सिद्धान्तदेवका पुराना ( ज्येष्ठ ) शिष्य बुल्ल गौड़ था, जिसका पुत्र गोप गौड़ नागर खण्डका शासक था । नागर खण्ड कर्णाटक देशमें था।" बुल्ल गौड़के समाधिमरणका उल्लेख भारंगीके एक अन्य शिलालेख में है, जिसमें कहा गया है कि बुल्ल या बुल्लुपको ग्रह अवसर अभयचन्द्रकी कुपास से प्राप्त हुआ था।' १. E.C. V. Bclut td, m. I33 जैन शिलालेख संग्रह भाग ३, लेख ५२४ २. Ibid no. 131, 132 लेख ।१४ ३. वही ४. L. C. IV. Hursur t], 110. 123 लेख ५८४ '.. E. C. VIHE. Sorah tl, 10, 329 लेख.३१० ६. L.C. VIII. Sorab t1. no, 330 लेख ६४६Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 88