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सम्पादकीय
जैनदर्शन को समझने की कुंजी है—'कर्मसिद्धान्त ।' यह निश्चित है कि समग्र दर्शन एवं तत्त्वज्ञान का आधार है आत्मा । और आत्मा की विविध दशाओं, स्वरूपों का विवेचन एवं उमके परिवर्तनों का रहस्य उद्घाटित करता है 'कर्मसिद्धान्त ।' इसलिये जैनदर्शन को समझने के लिए कर्मसिद्धान्त' को समसमा अनिवार्य है।
कर्मसिद्धान्त का विवेचन करने वाले प्रमुख ग्रन्थों में श्रीमद् देवेन्द्रमूरि रचित' कर्मग्रन्थ (भाग १ से ६) अपना विशिष्ट महत्व रखता है । जैन साहित्य में इसका अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। तत्त्वजिज्ञासु भी कर्मग्रन्थ को आगम की तरह प्रतिदिन अध्ययन एवं स्वाध्याय की वस्तु मानते हैं। ___ कर्म ग्रन्थ की संस्कृत टीकाएँ बड़ी महत्वपूर्ण हैं। इसके कई गुजराती अनुवाद भी हो चुके हैं। हिन्दी में कर्मग्रन्थ का सर्वप्रथम विवेचन प्रस्तुत किया था विद्वद्वरेण्य मनीषी प्रवर महाप्राज्ञ पं० सुखलालजी ने। उनकी पाली तुलनात्मक एवं विद्वत्ताप्रधान है । पं० सुखलाल जी का विवेचन आज प्रायः दुप्पाप्य-सा है। कुछ समय से आशुकविरत्न गुरुदेव श्री महधरकेसरीजी म० की प्रेरणा मिल रही थी कि कर्मग्रन्थ का आधुनिक शैली में सरल वियमन प्रस्तुत करना चाहिए । उनकी प्रेरणा एवं निदेशन से यह सम्पादन प्रारम्भ हुआ । विद्याविनोदी श्री सुकनमुनिजी की प्रेरणा से यह कार्य बड़ी गति के साथ आगे बढ़ता गया। श्री देवकूमार जी जैन का सहयोग मिला और कार्य कुछ ही समय में आकार धारण करने योग्य बन गया।
इस संपादन कार्य में जिन प्राचीन ग्रन्थ लेखकों, टीकाकारों, विवेचनकर्ताओं तथा विशेषतः पं० सुखलाल जी के ग्रन्थों का मुझे सहयोग प्राप्त हुआ
और इनके कारण इतने गहन ग्रन्थ का विवेचन सहजगम्य बन सका । मैं उक्त सभी विद्वानों का असीम कृतज्ञता के साथ आभार मानता हूँ।