Book Title: Kalyanmandir Stotra Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 9
________________ ११ स्वामी ने शिवपिण्डी को नमस्कार करने के लिये बाध्य करने का प्रसंग उपस्थित होने पर स्वयम्भूस्तोत्र की रचना की, आचार्य मानतुङ्ग ने ४८ तालों के अन्दर बन्द किये जाने पर भक्तामर स्तोत्र बनाया, प्राचार्य धनञ्जयकवि ने अपने पुत्र के सर्प द्वारा इसे जाने पर विषापहारस्तोत्र को रचा और प्राचार्य वादिराज ने कुष्टरोग से पीड़ित होने पर एकीभाव स्तोत्र बनाया। उसी प्रकार माचार्य कुमुदचन्द्र पर भी किसी कष्ट के प्राने पर उनके द्वारा इस स्तोत्र की रचना हुई है। कहा जाता है कि इन्होंने इस स्तोत्र द्वारा भगवान पाश्वनाथ का स्तवन करके एक स्तम्भ से उनकी प्रतिमा प्रकटित की थी और जिनशासन का प्रभाव एवं चमत्कार दिखाया था । इस स्तोत्र का दूसरा नाम 'पाश्वंजिनस्तोत्र' भी है । जैसा कि इसके दूसरे पद्य में प्रयुक्त कमठ-स्मय- धूमकेतुः' नाम से प्रकट है, जो भगवान पार्श्वनाथ के लिये आया है। 'कल्याण मन्दिर' शब्द से प्रारम्भ होने के कारण इसे कल्याणमन्दिर स्तोत्र उसी प्रकार कहा जाता है जिस प्रकार श्रादिनाथ स्तोत्र को भक्तामर' शब्द से शुरू होने से 'भक्तामर स्तोत्र' कहा जाता है । इस सुन्दर कृति को भक्तामर स्तोत्र की तरह दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदाय मानते हैं। श्वेताम्बर इसे सन्मतिसूत्र भादि के कर्ता श्वेताम्बर विद्वान सिद्धसेन दिवाकी रचना बतलाते हैं और दिगम्बरस्तोत्र के अन्त में श्राये 'जननयन- कुमुदचन्द्र प्रभाम्वरा:' आदि पद्य में सूचित 'कुमुदचन्द्र' नाम से इसे दिगम्बराचार्य कुमुदचन्द्र की कृति मानते हैं । इस सम्बन्ध में यहां खास तौर से ध्यान देने योग्य बात यह हैं कि इस स्तोत्र में 'प्राग्भारसंभूतनभांसि रजांसि शेषादPage Navigation
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