Book Title: Kalyanmandir Stotra Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 7
________________ से संसारी जीव भी शरीर का त्याग कर प्रशरीर परमात्मावस्था को प्राप्त हो जाते हैं।' विद्यानन्दस्वामी भी अपनी प्राप्तविषय पर लिखी गई प्राप्तपरीक्षा में यही बतलाते हुए कहते हैं - श्रेयोमागस्य संसिद्धिः, प्रसारात्परमेष्ठिनः । हत्यास्तद्गुणस्तोत्र, प्रास्त्रादौ मुनिपुङ्गा ॥ 'परमेष्ठी के गुणस्मरणादि से स्तुति कर्ता को श्रेयोमार्ग (सम्यग्दर्शनादि) की प्राप्ति और ज्ञान दोनों होते हैं। बड़े-बड़े मुनीश्वरों ने उनका गुणस्खनन किया है।' तत्त्वार्थ सूत्रकार महान प्राचार्य श्री गुद्धपिच्छ भी इसी बात को प्रदर्शित करते हुए अपने तत्त्वार्थसूत्र के शुरू में निम्नप्रकार मंगलाचरण रूप गुणस्तोत्र करते हैं : - मोक्षमार्गस्य मेतार, भेशार कर्मभूभृताम् । मतारं विश्वतस्थाना, वारे तवगुणसम्पपे । यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि यद्यपि वीतराग देव को भक्त की स्तुति-प्रार्थना अथवा नमस्कारादि से कोई प्रयोजन नहीं है उसे वह करे चाहे न व.रे, क्योंकि वह वीतराग एवं वीतद्वेष है और इसलिए उसके करन से वह प्रसन्न और न करने से अप्रसन्न नहीं होता। फिर भी उसके पवित्र गुणों के स्मरण से भक्त का मन अवश्य पवित्र होता है जैसा कि समन्तभद्र स्वामी ने कहा है। न पूण्याऽस्थयि वीतरागे, म निपया मार! विवातवरे । तथापि ते सगुणस्मृति में, पुनाति वित्तं कुरितामेभ्यः ।। इतना ही नहीं बल्कि वीतराग देव की स्तुति-प्रार्थनादिक करने वाला तो स्वभाषतः सुखों एवं श्रीसम्पन्नता कोPage Navigation
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