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RANSAR
कल्पसूत्रे
सशब्दार्थे
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भगवतः समभाव:
धरती पर पटका । नीचे पटककर उसने छरों के समान तीक्ष्ण दांतों के अग्रभाग से उपकाराषप्रभु के शरीर को विदारण करके पैरों से कुचला फिर भी भगवान् कायोत्सर्ग से विच. कारविपये लित न हुए। तब भगवान् को अडग देखकर संगम देव ने अत्यंत ही भयानक पिशाच का रूप बनाकर उन्हें भयभीत करना चाहा फिर भी भगवान् चलायमान न हुए। तव प्रभु को क्षोभरहित देखकर सिंह की विकुवर्णा की और उस सिंह से प्रभु के शरीर को विदारण करवाया । इतने पर भी प्रभु कायोत्सर्ग से लेश मात्र भी नहीं डिगे । तब उसने भगवान् ऊपर अत्यधिक भारवाला लौहे का गोला तेजी के साथ फैंका, इस पर l भी भगवान् अकंप बने रहे । इसी प्रकार जैसा कि पहले शूलपाणि यक्ष के उपसर्गवर्णन में कहा गया है, उसी प्रकार इस संगम देव ने भी सांप, वीछ, रीछ, शूकर, Ill
भूत, प्रेत आदि को वैक्रियशक्ति से उत्पन्न करके भगवान् को उपसर्ग दिया, मगर l | भगवान् कायोत्सर्ग से चलित न हुए, कम्पित न हुए, निर्भय रहे, त्रास, को प्राप्त न
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