Book Title: Kalpsutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 887
________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थ ॥८७१॥ रिने मि प्रभोः चरित्रम् संयोत्तर एगसहस्सा, वाईणं संखा असया, सासणकालो, पाउण चउरासीइ सह- स्सर्वरिसा, संखेन्जा पट्टा मोक्खं गया, सासणदेवो गोमेधो, सासणदेवी अम्बा॥ .. २२ अरिष्टनेमि प्रभु का चरित्रभावार्थ-जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में अचलपुर नामके नगर में विक्रमधन नाम के प्रतापी राजा राज्य करते थे। शंख के पूर्व जन्म के बन्धु सूर और सोम भी आरण देवलोक से च्यवकर श्रीषेण के घर यशोधर और गुणधर नाम से पुत्र हुए। शंख राजा ने दीक्षा ग्रहण की। शंख ने बीस स्थानों की आराधना कर तीर्थंकर नाम कर्मका उपार्जन किया। वहां से चवकर अपराजित देवलोक की स्थिति ३२ सागरोपम, जन्म नगरी सोरीपुर, पिताका नाम समुद्रविजय, माताका नाम शिवादेवी, आयुष्य एक हजार वर्ष, गर्भकल्याणक कार्तिक कृष्ण द्वादशी जन्म कल्याणक श्रावण शुक्ल पंचमी, कुंवरपद ॥८७१॥

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