Book Title: Kalpsutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 905
________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥८८९॥ न्नचित्तवाले क्षमावंत आर्य नंदिला नामक आचार्य को वंदन करता हूं ॥३३॥ 1. गणधराणां नामादिकम् मूलम्-वढओ वाबगवंसो यसवंसो अज्जनाग हत्थीणं ॥ वागरणं करणं ६ भंगिय, कम्मप्पयडी प्पहाणाणं ॥३४॥ भावार्थ-२१ आर्य नागहस्ति आचार्य वंश और यश की वृद्धि के कर्ता, संस्कृत प्राकृत व्याकरण के ज्ञाता, अच्छेद प्रश्नोत्तर के दाता, करण सित्तरी चरण सित्तरी द्विभंगी, त्रिभंगी चतुभंगी प्रमुख की युक्ति के मेलक, कर्म प्रकृति की विधी जमाने : में प्रधान इनको वंदना ॥३४॥ ... मूलम्-जच्चंजणघाउ समप्पहाण, मुद्दिय कुवलयनिहाणं ॥ वडूढओ वायग वेसोरे वइ नक्खत्त नामाणं ॥३५॥ भावार्थ-२२ रेवती आचार्य जाचा हुआ प्रधान अंजन तथा सुरमा जैसी शरीर की प्रभाकांति के धारक द्राक्षवर्णकमल समान, रत्नसमान वर्ण के धारक वंश वृद्धि ।

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