Book Title: Kalpsutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 907
________________ कल्पसूत्रे शब्दार्थे ॥ ८९१ ॥ I खमासमणे, वंदे नागज्जुणायरिए ॥ ३८ ॥ भावार्थ - २५ नागार्जुनाचार्य अर्थ सहित सूत्र के धारक, चुल कालिक सूत्र और चार अनुयोग के धारक तथा हिमवंत पर्वत के समान क्षमा श्रमण ॥३८॥ मूलम् - तत्तो हिमवंतमहंत, विक्कमे धिइ परक्कम मणते ॥ सज्झाय मणं - तधूरे, हिमवंत वंदिमो सिरसा ॥ ३९ ॥ भावार्थ - वाचकाचार्य महाहिमवंत पर्वत समान महापराक्रमी बलवंत धैर्यवंत अप्रमत्त बहुतसी स्वाध्याय के करने वाले को वंदन ॥ ३९ ॥ मूलम् - मिउ मद्दव संपन्ने, अणुपुव्विं वायगत्तणं पत्ते ॥ उहसुय समायारे नागज्जुण वायगे वंदे ॥४०॥ भावार्थ - - २६ नागार्जुनाचार्य अत्यन्त मृदु कोमल स्वभाव के धारक अहंकार SODE 0 गणधराणां नामादिकम् ॥८९१ ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 905 906 907 908 909 910 911 912