Book Title: Kalpsutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 902
________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥८८६॥ गोत्तं, बहुलस्स बलिस्सहं वंदे ॥२७॥ भावार्थ:-९ महावीर स्वामी सुहस्ति स्वामी यह दोनों वच्छगोत्री, १०, बहुल स्वामी कोसि गोत्री ॥२७॥ मूलम् - हारियगोत्तं सायं च वंदे मोहारियं च सामज्जं | वंदामि कोसियगोत्तं, संडिल्लं अज्जज्जीय घरं ॥ २८ ॥ भावार्थ - ११ साइण स्वामी हाव्यि गोत्री, १३ स्यामाचार्य मोहरी गोत्री १३ संडिलाचार्य कौशिक गोत्री शुद्धाचारी ||२८|| मूलम् - तिसमुद्दक्खाय कित्तिं, दीवसमुद्दे सुगहियपेयालं ॥ वंदे अज्जसमुद्द, अक्खोभिय समुद्रगंभीरं ॥ २९ ॥ भावार्थ - १४ जिन की तीनों दिशा में समुद्र पर्यंत उत्तर में वैताढ्य पर्वत पर्यंत गणधराणां नामादिकम् ||८८६॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912