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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे
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गोत्तं, बहुलस्स बलिस्सहं वंदे ॥२७॥
भावार्थ:-९ महावीर स्वामी सुहस्ति स्वामी यह दोनों वच्छगोत्री, १०, बहुल स्वामी कोसि गोत्री ॥२७॥
मूलम् - हारियगोत्तं सायं च वंदे मोहारियं च सामज्जं | वंदामि कोसियगोत्तं, संडिल्लं अज्जज्जीय घरं ॥ २८ ॥
भावार्थ - ११ साइण स्वामी हाव्यि गोत्री, १३ स्यामाचार्य मोहरी गोत्री १३ संडिलाचार्य कौशिक गोत्री शुद्धाचारी ||२८||
मूलम् - तिसमुद्दक्खाय कित्तिं, दीवसमुद्दे सुगहियपेयालं ॥ वंदे अज्जसमुद्द, अक्खोभिय समुद्रगंभीरं ॥ २९ ॥
भावार्थ - १४ जिन की तीनों दिशा में समुद्र पर्यंत उत्तर में वैताढ्य पर्वत पर्यंत
गणधराणां नामादिकम्
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