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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥८८५॥
गणधराणां नामादिकम्
- मूलम्-सुहम्मं अग्गिवेसाणं, जंबू नामं च कासवं पभवं कच्चायणं बंदे, वच्छं सिज्जं भवं तहा ॥२५॥
भावार्थ-अब अनुपम शुद्धाचार के पालक जिन शासन के प्रवर्तक सतावीस पाटों के नाम गोत्रादि कहते हैं-१ श्री सुधर्मास्वामी अग्निवेसायन गोत्री, २ जम्बूस्वामी काश्यप गोत्री, ३ प्रमव स्वामी कात्यायन गोत्री, ४, सिज्जंभव स्वामी वच्छ गोत्री ॥२५॥
. मूलमू-जस भदंतुगीयं वंदे, संभुयं चेब माढरं ॥ भद्दबाहुं च पाइन्नं, थुलभदं च गोयमा ॥२६॥
भावार्थः-५ यशोभद्र स्वामी तुंगीय गोत्री, ६ संभूति स्वामी माढर गोत्री; ७ भद्रवाहु स्वामी प्राचीन गोत्री ८ स्थुलभद्र स्वामी गौतम गौत्री ॥२६॥ मूलम्-एलावच्च सगोतं, वंदामि महागिरि सुहत्थिं च, ततो कोसिय
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॥८८५।।