Book Title: Kalpsutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 883
________________ नेमीनाथ प्रभो:चरित्रम् ॥८६७|| कल्पसूत्रे * संखा पंचसहस्सा, वाईणं संखा एगसहस्सा, सासणकालो पंचलक्खवरिसो सशब्दार्थे संखेज्जा पट्टा मोक्खं गया, सासणदेवो भिउडिनामा, सासणदेवी गंधारी॥ २१ श्रीनेमीनाथप्रभु का चरित्रभावार्थ-जम्बूद्वीप के पश्चिमविदेह में भरत नामक विजय में कौशांबी नामकी नगरी थी। वहां सिद्धार्थ नाम का राजा राज्य करता था. उसने संसार से विरक्त होकर सुदर्शन नामक मुनि के समीप दीक्षा ग्रहण की। राजर्षि सिद्धार्थने कठोर तप करते हुए तीर्थंकर नामकर्म के बीस स्थानों की सम्यक् आराधना कर तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन किया। अन्तिम समय में अनशन कर वे प्राणत नामक विमान में देवरूपसे उत्पन्न हुए। देवलोक से च्यवन १०वें देवलेोककी स्थिति २० बीस सागरोपम, जन्मनगरी मिथिला, पिताका नाम विजयसेन, माताका नाम विप्रा; आयुष्य १० हजार वर्ष, गर्भ कल्याणक आषाढ शुक्ल पूर्णिमा. जन्म कल्याणक श्रावण कृष्ण अष्टमी, कुवरपद अढाई २॥ हजार ॥८६७॥

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