Book Title: Kalpsutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 881
________________ कल्पसूत्रे शब्दार्थे ॥८६५॥ २१ नेमिनाहपहुस्स चरित्तं मूलम्-जंबुद्दीवे पच्चत्थिमविदेहे भरहनाम विजयम्मि कोसंबी नाम णयरी होत्था । तत्थ सिद्धत्थ नाम राया, सो संसाराओ विरत्तो जाओ, सुदसणं नामग मुणि समीवे दिक्खिओ जाओ, उग्गतवसंजमं आराहिऊण तित्थगर नामगोयं कम्मं निबंधिय, अणसणं किच्चा पाणए देवलोगे बीससागरोवमो ठिईओ महढिओ देवो जाओ, देवलोगाओ चंविऊण मिहिलाए णगरीए विजयसेण राया, माउस्स नाम विप्पा, आउ दससहस्सवरिसं, आसाढ सुक्कपुण्णिमाए गब्भकल्लाणगं, सावणकिण्ह अटूसीए जम्मकल्लाणगं, अद्भुत इयसहस्वरिसं कुमारपए, पंचसहस्सवरिसं रज्जं करीअ, एगसहस्सपरिवारेण सद्धिं आसोअ किण्ह नवमीए देवकुस सिवियारूढो दिक्खिओ जाओ, पढम भिक्खादायारो FODIES Carsecsee नेमीनाथ प्रभोः चरित्रम् ॥८६५॥

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