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गौतमस्वामिनः विलापः केवलज्ञान- .. प्राप्तिश्र
कल्पसूत्रे जिसका नाम ही वीतराग है वह किस पर राग करेगा ? [एवं मुणिय ओहिं पउंजइ] सशब्दार्थे
- यह जानकर गौतमस्वामीने अवधिज्ञान का प्रयोग किया [ओहिणा भवकूवपाडिणं ॥७२७॥
मोहकलियं वीयरागोवालंभरूपं नियावराहं जाणिय तं खामिय पच्छातावं करेइ] अवधिज्ञान से भवकूप में गिरानेवाला, मोहयुक्त और वीतराग को उपालंभ देने रूप अपने अपराध को जानकर और खमाकर पश्चात्ताप किया और विचार किया [को मम ?] मेरा कौन है ? [अहं कस्स ?] मैं किसका ? [एगो एव अप्पा आगच्छइ गच्छइ य] अकेला ही आत्मा आता है और अकेला ही जाता है [न कोवि तेण सद्धिं आगच्छइ गच्छइ य] न कोइ उसके साथ आता है और न जाता है। कहा भी है [एगो हं नस्थि मे कोइ, नाहमन्नस्स कस्स वि] मैं अकेला हूं, मेरा कोई नहीं है और न मैं ही किसी अन्य का हूं [एवमप्पाणमणसा अदीणमणुसासए] इस प्रकार मन से अपने दैन्य रहित-उदार आत्मा का अनुशासन करें। [वयणेण एगत्तभावना भावियस्स गाोयमसामिस्स] इत्यादि
॥७२७॥