Book Title: Kalpsutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 873
________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे १८५७ ॥ आयरिय समोसरिओ, धम्मघोसस्स देसणं सोच्चा महब्बलो राया संसाराओ विरत्तो जाओ, धम्मघोससमीवे दिक्खिओ जाओ, उग्गतवसं नम आराहिऊण तित्थगर नाम गोयं कम्मं उवाजिऊं, बत्तीससागरोवमं ठिईओ जयंत विमाणे महड्रढिओ देवो जाओ, तओ चविऊण मिहिला णयरीए जम्म गहीय, पिउस्स नाम कुंभसेणो, माउस्स नाम पभावई, आउ पणपन्नं सहस्सवरिसं, फग्गुण सुक्क चउत्थादिणे गव्भकल्लाणगं, मिग्गसिर सुक्कएक्कारस दिवसे जम्मकल्लाणगं, कुमारपए सयवरिसं, रज्जं ण कुणिअ, तिण्णि सहस्सपरिवारेण सद्धिं मनोरमा सिबियारूढो मिग्गसिर सुक्करकारसे दिणे दिक्खिओ जाओ । पढम भिक्खादायारो विस्ससेणो, भिक्खाए खीरं लद्धं, छउमत्थावत्था कालो एगपहरो, असोग नामक चेइयरक्खतले पोस सुक्कएक्कारस दिणे केवलणाणं, चेइय सुक्कचउत्थ dearance मल्लीनाथ प्रभोः चरित्रम् ॥८५७॥

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