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कल्पसूत्रे
सशन्दार्थ 1॥८१६॥
९--श्रीसुविधिनाथ का पूर्वभव
सुविधिनाथ ____ पुष्करवर द्वीपार्ध के पूर्व विदेह में पुष्कलावती विजय है। उसकी नगरी 'पुंडरी- चरित्रम् किनी' थी । महापद्म वहां का राजा था। वह बडा ही धर्मात्मा तथा प्रजावत्सल था। वह संसार से विरक्त हो गया और उसने जगन्नद नामक स्थविर मुनि के पास दीक्षा ग्रहण की। एकावली जैसी कठोर तपश्चर्या करते हुए महापद्म मुनि ने तीर्थङ्कर नाम | कर्म का उपार्जन किया। अन्त में वे शुभ अध्यवसाय से मर कर आणत नामक देव || विमान में महर्द्धिकदेव रूप में उत्पन्न हुए।
वहां से च्यवकर ९ देवलोक की स्थिति १९ सागरोपम, जन्मनगरी कांकदी, पिता के नाम सुग्रीव, माता का नाम रामा आयुष्य २ लाख पूर्व गर्भ कल्याणक फल्गुन कृष्ण नवमी जन्म कल्याणक मार्गशीर्ष कृष्ण ५ पञ्चमी, कुंवरपद ५० पचास हजार पूर्व, राजगादी समय एकलाख पूर्व, शिबिका अरुण प्रभा, दीक्षा कल्याणक मिगसरवद छ? ९
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