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भगवतो३५वचनातिशेपाः
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कल्पसूत्रे वचनों में पूर्वोक्त गुण होने से उनका प्रशंसनीय होना । २५ काल, कारक, वचन, सशब्दार्थ लिंग आदी का विषर्यासरूप भाषा संबंधी दोषों का न होना । २६ श्रोताओं के मन ॥४४३॥
में वक्ता के प्रति कूतूहल [उत्कंठा] बना रहना । २७ बहुत जल्दी न बोलना । २८ बीच बीच मे रुककर-अटक कर न बोलना, धारा प्रवाह बाणी का होना । २९ वक्ता के मन में भ्रान्ति न होना, उसका चित्त अन्यत्र न होना, रोष तथा आवेश न होना, अर्थात् अभ्रान्त भाव से उपयोग लगाकर शांति के साथ भाषा बोलना । ३० वाणी में विचित्रता होना । ३१ अन्य पुरुषों की अपेक्षा वचनों में विशेषता होने के कारण
श्रोताओं को विशिष्ट बुद्धि प्राप्त होना । ३२ वर्णोपदों और वाक्यो का पृथक्-पृथक् In होना । ३३ प्रभावशाली एवं ओजस्वी वचन होना । ३४ उपदेश देने मे थकावट न
होना । ३५ जब तक प्रतिपाद्य विषय की भली भांति सिद्धि न हो तब तक लगातार है उस की प्ररूपणा करते जाना। अधूरा न छोडना ॥२॥
॥४४३॥