Book Title: Jivan Shreyaskar Pathmala
Author(s): Kesharben Amrutlal Zaveri
Publisher: Kesharben Amrutlal Zaveri
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श्रीनन्दीसूत्र]
[२३५
उवक्खाइयाए पंच पंच अक्खाइयउवक्खाइयासयाई एवमेव सपुवावरेणं 'प्रधुट्टायो कहाणगकोडीअो हवंतित्ति समक्खायं । नायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा, संखिजा अणुओगदारा, संखिजा वेढा, संखिजा सिलोगा, संखिजाओ निज्जुत्तीश्रो संखिज्जाओ संगहणीओ संसिजाओ पडिवत्तीओ। से गं अंगट्टयाए छठे अंगे, दो सुयक्खंधा एगुणवीसं अज्झयणा, एगूणवीसं समुद्देसणकाला, संखेजा पयसहस्सा पयग्गेणं, संखेजा अक्खरा, प्रांता गमा, अरांता पजवा, परित्तः तसा, अशांता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपरागत्त। भावा आघविजंति, परणविजंति, परूविजंति, दसिजंति, निदंसिजंति, उवदंसिजंति । से एवं अाया, एवं नाया, एवं विराणाया, एवं चरणकरलपरूवणा आघविजइ, से तं नायाधम्मकहाओ ६ ॥ सू० ॥ ५० ॥
से किं तं उवासगदसायो ? उवासगदसासु णं समणोवासया नगराई, उजाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्पायरिया, धम्मकहाओ इहलोइयपरलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिचाया, पव्वजाओ, परिआगा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं सीलन्वयगुणवेरमणपच्चक्खागपोसहोववासपडिवजणया, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपञ्चक्खाणाई, पाओवगमगाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपञ्चाईओ, पुणबोहिलामा, अंतकिरियाओ य आघविजंति । उवासगदसारा परित्ता वायणा, संखेज्जा असाप्रोगदारा, संखजा वेढा, संखेजा सिलोगा,संखेज प्रो निज्जुत्तीओ, संखेजाओ संगहणीप्रो, संखेजाओ पडिवत्तीअो । से गं अंगट्ठयाए सत्तमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झयस्था, दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला, संखेज्जा पयसहस्सा

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