Book Title: Jivan Shreyaskar Pathmala
Author(s): Kesharben Amrutlal Zaveri
Publisher: Kesharben Amrutlal Zaveri
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२७२]
[जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला
अहवा सव्वं चिअ वीयरायवयणाणुसारि जे सुकयं । कालत्तए वि तिविहं अणुमोएमो तयं सव्वं ।। ५८ ।। सुहपरिणामो निञ्च चउसरणगमाइ अायारं जीवो। कुसलपयडीउ बंधा बंद्धाउ सुहाणुबंधाउ ॥ ५६ ।। मंदाणुभावा बद्धा तिवाणुभावाउ कुणइ ता चेव । असुहाउ निरणुबंधाउ कुणइ तिव्वाउ मंदाउ ॥ ६० ॥ ता एयं कायव्वं बुहेहिं निञ्चपि संकिले सम्मि । होइ तिकाल सम्म असंकिलेसंमि सुकयफलं ।। ६१ ।। चउरंगो जिणधम्मो न को चउरंगसरणमवि न कयं । चउरंगभवुच्छेत्रो नको हा हारिओ जम्मो ॥ १२ ॥ इ-जीवपमायमहारिवीर-भदंतमे-अमझयणं । झाएसु तिसंझमवंझ-कारण निव्वुइसुहाणं ।। ६३ ॥ .
॥ चउसरणं समत्तं ॥ १ ॥
॥ सुभाषित ॥
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पंच-महव्यय-सुव्वय-मूलं, समण-मणाइल-साहू सुचिन्न । वेरविरमणपजवस्मारणं, सव्वसमुदगहोदधी तित्थं ॥ १ ॥ तित्थंकरहिं सुदेसियमग्गं, नरग-तिरिय विवजिय-मग्गं । सव्वं-पवित्तंसुनिम्मियसारं, सिद्धि विमाणं अवंगुय-दारं ॥२॥ देव नरिंद-नमंसिय-पूइयं, सव्व जगुत्तम-मंगल-मग्गं । उद्धरिसं गुण-नायगमेग, मोक्खपहस्स-वडिंसगभूयं ॥३॥

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