Book Title: Jivan Shreyaskar Pathmala
Author(s): Kesharben Amrutlal Zaveri
Publisher: Kesharben Amrutlal Zaveri

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Page 367
________________ ३.०] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला . चत्तारि अट्ठदस दोय वंदिया जिणवग चउबीसं । परमट्ट निटिअट्ठा सिद्धा सिद्धिं ममं दिसंतु ॥५॥ सिद्धा नमो किच्चा, संजया च भावो। सन्ती सन्तीकरे लोए, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ अर्थ-इच्छित कार्य-सिद्धि होने के लिए प्रथम इष्टदेव को नमस्कार किया जाता है। सिद्धार अर्थात् सिद्ध भगवान् को नमस्कार हों। ___ संजयाणं अर्थात् संयति-प्राचार्य, उपाध्याय घ सर्व साधु-साध्वीजी महाराज को नमस्कार हों। सारे लोक में शान्ति करने वाले शान्तिनाथ प्रभुजी को त्रिकरण-शुद्धभावपूर्वक नमस्कार हो। चइत्ता भारह वासं, चकवट्टी महड्ढिो । सन्ती सन्तीकरे लोर, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ अर्थ-सारे लोक में शान्ति स्थापित करने वाले सोलहवें शांतिनाथ नामके चक्रवर्ती महान् ऋद्धि-सिद्धि वाले भरत क्षेत्र का राज्य छोड़कर उत्तम (मोक्ष) गति को प्रप्त हुए। अलर्छ पुव्वलद्धं जिणवयण-सुभासियं अमियं । भूइसुयगइमग्गं ना मरणाय बीयामो ।।१।। जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तइ । अहम्म कुणमाणस्स, अफला जति राईअो ।।२।। जा जा वच्चइ रयणी. न सा पडिनियत्तइ । धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जंति राईओ॥३॥ एवं लोए पलित्तम्मि, जगए मरणेण य । अप्पाणं तारइस्लामि, तुब्भेहि अणुमनिओ।।४।। एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस । दसहा उ जिणित्ता णं, सव्व सत्तू जिणामहं ॥५॥

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