Book Title: Jivan Shreyaskar Pathmala
Author(s): Kesharben Amrutlal Zaveri
Publisher: Kesharben Amrutlal Zaveri
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'सुभाषित]
[२७३
धम्माराम चरे भिक्खू, धिमं धम्म-सारही। धम्मारामे रया दंते, बंभचेर-समाहिए ॥४॥ देव-दाणव-गंधव्वा, जक्ख-रक्खस्स-किनारा। बंभयारिं नमसंति दुक्करं जे करन्ति तं ॥ ५॥ एस धम्मे धुवे निश्चे, सासए जिणदेसिए । सिद्धा सिज्झंति चाणेणं, सिझिस्संति तहावरे ॥ ६ ॥ अरहंत-सिद्ध-पवयण-गुरु-थेर-बहुस्सुए-तवस्सीसु। वच्छल्लया य तेसिं अभिक्खनाणावोगे य ॥७॥ दसण-विणय-श्रावस्सए य, सीलब्वए निरइयारे । खणलव-तव-चियाए, वेयावच्चे समाहीए ।। अपुव्वनागरगहणे सुयभत्ती, पव्वयणे पभावणया । एएहिं कारणेहिं तित्थयरत्तं लहइ जीवो ।। ६ ।। जिणवयणे अणुरत्ता जिणवयणं जे करंति भावेणं । अमला असं किलिट्ठा, ते डंति य परित्तसंसारि ॥ १०॥ एवं खुनाणिणो-सारं, जं न हिंसई किंचणं । अहिंसा-समयं चेव, एत्तावतं वियाणिया ॥ ११ ॥ जाइं च बुढिच इहेज-पासं, भूतेहिं जाण पडिलेह सायं।. तम्हा तिविजो-परमंतिणञ्चा, सम्मत्तदंसीन करेइ पावं १२.. उम्मुश्च पासंह मचिए हिं, आरंभजीवीऊज्झपयाणुपस्सी। कामेसु गिद्धा णित्रयं करंति, संसिंचमाणा पुणरेति गम्भं१३ सवणे नाणे विन्नाणे, पञ्चक्खाणे य संजो। अणएहए तवे चेव, वोदाणे अकिरियासिद्धि ॥ १४ ॥ एगोहं नत्थि मे कोइ नाहमनस्स कस्सई । एवं अहीणमणसा; अपाणमांसासई ॥१५ ।।

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