Book Title: Jivan Shreyaskar Pathmala
Author(s): Kesharben Amrutlal Zaveri
Publisher: Kesharben Amrutlal Zaveri

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Page 364
________________ मेरी भावना] ही श्रींकारवरं नमोऽक्षरपरं ध्यायति ये योगिनोहृत्पद्म विनिवेश्य पार्श्वमधिपं चिंतामणिसंशकम् ॥ भाले वामभुजे च नाभिकरयो यो भुजे दक्षिणे । पश्चादष्टदलेषु ते शिवपदं द्वित्रैर्भवैर्यान्त्यहो ॥ ८॥ स्रग्धरा-नोरोगानैव शोकान कलहकलना नारिमारिप्रचारानवाधि समाधिन च दरदुरिते दुष्टदारिद्रता नो ॥ नो शाकिन्यो ग्रहा नो न हरिकरिगणा व्यालवेताल जाला जायते पार्श्वचिन्तामणिनतिवशतःप्राणिनां भक्तिभाजाम् । शार्दूलः-गीर्वाणदु मधेनुकुम्भमणयस्तस्याङ्गणे रंगिणो देवा दानवमानवाः सविनयं तस्मै हितध्यायिनः॥ लक्ष्मीस्तस्य वशाऽवशेव गुणिनां ब्रह्माण्डसंस्थायिनी..। श्रीचिन्तामणिपार्श्वनाथमनिशं संस्तौति यो ध्यायति १० मालिनीः-इति जिनपतिपार्श्वः पावपाख्यियक्षः प्रदलितदुरितौघःप्रीणितप्राणिसार्थः। त्रिभुवनजनवाञ्छादानचिंतामणिकः। शिवपदसरुबीज बोधिबीजं ददातु ॥ ११ ॥ मेरी भावना जिसने राग द्वेष कामादिक, जीते सब जग जान लिया। सब जीवों को मोक्ष माग का, निस्पृह हो उपदेश दिया । बुद्ध वीर जिन हरि हर ब्रह्मा, या उसको स्वाधीन कहो। भक्ति भाव से प्रेरित हो, यह चित्त उसी में लीन रहो ॥१॥ विषयों की आशा नहीं जिनके, साम्य भाव धन रखते हैं। निज पर के हित साधन में जो, निशिदिन तत्पर रहते हैं।

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