Book Title: Jivan Shreyaskar Pathmala
Author(s): Kesharben Amrutlal Zaveri
Publisher: Kesharben Amrutlal Zaveri
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२६६]
. [जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला.
ओयं चित्त समादाय, ज्झारा समुप्पजइ । धम्मे टिओ अविमगो, निब्याणम भिगच्छद ॥ १॥ ण इमं चित्तं समादाय, भुजो लोयंसि जायइ । अप्पणो उत्तमं ठाणं, सरणी णाणेण जाणइ ॥२॥ अहातच्चं तु सुमि, खिप्पं पासेति संवुडे । सव्वं वा ओहं तरति, दुक्खओ य विमुच्चइ ॥ ३॥ पंताई भयमाणस्स, विवित्तं सयणासणं । अप्पाहारस्स दंतस्स, देवा दंसेति ताइणो ॥ ४ ॥ सम्व-काम-विरतस्स, खमणो भय-भेरवं । तो से अोही भवइ, संजयस्स तवस्सियो ।॥ ५॥ तवसा अवहटु लेस्सस्स, दंसरणं परिसुज्झइ । उड्ढं अहे तिरियं च, सव्वमणुपस्सति । ६॥ सुसमाहियलेस्सस्स, अवितकस्स भिक्खुणो। सम्बो विपामुकरल, प्राया जाणाइ पज्जवे ॥ ७॥ जया से नाणावरणं, सव्वं होइ खयं गयं । तो लोगमलोगं च, जिरणो जाणति केवली ॥ ८ ॥ जया से दरसणावरण, सव्वं होइ खयं गयं । तो लोगमलोगं च, जिणो पासति केवली ॥ ६ ॥ पडिमाए विसुद्धाए, मोहणिजं खयं गयं । असेसं लोगमलोगं च पासेति सुसमाहिए ॥ १० ॥ जहा मत्थए सूइए, हंताए हम्मइ तले । एवं कम्माणि हम्मंति, मोहणिजे खयं गए ॥ ११ ॥ सेणावइमिन निहते, जहा सेणा पणस्सइ । एवं कम्पाणि णस्संति, मोहणिजे खयं गए ॥ १२ ।। धूम-हीणो जहा अग्गी, खीयति से निरिंधणे । एवं कम्माणि खीयंति, मोहणिजे खयं गए ॥ १३ ॥ .

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