Book Title: Jivan Shreyaskar Pathmala
Author(s): Kesharben Amrutlal Zaveri
Publisher: Kesharben Amrutlal Zaveri

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Page 331
________________ ॥ दशाश्रुतस्कंध चित्त-समाधि पंचमी दशा ॥ नमो सुयदेवयाए भगवतीए ।सुयं मे पाउसं! तेणं भगवया एवमक्खाय, इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस चित्त-समाहिठाणा पन्नत्ता । कयरा खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस चित्तसमाहिठाणा--पराणता ? इमे खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दसचित्तसमाहिठाणा-पन्नता तंजहा-तेणं कालेणं तेण समएणं वाणियग्गामे नगरे होत्था, नगर-वरणओ भाणियन्वो ॥१॥ तस्स ण वाणियग्गामस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए दूतिपलासए नाम चेइए होत्था, चेइए वरणो भाणियव्वो ॥ २॥ जियसत्तू राया, तस्स धारिणी नामं देवी एवं सव्वं समोसर भाणियन्वं जाव पढविसिलापट्टए, सामी समोसढे परिसा निग्गया; धम्मो कहिओ परिसा पडिगया ॥३॥ अजो! इति सपणे भगवं महावीरे समणाय समणीओय निग्गंथा य निग्गंधीओ य आमंतिता एव वयासी-इह खलु अजो! निग्गंथाणं वा, निग्गथीणं वा इरियास मियाणं, भासास मियामां, एसणासमियाणं, आयाणभंड-मत्त-निक्खेवणा-समियाणं, उञ्चारपासवण-खेल-जल्लसिंघाण-पारिट्ठावणिया-समियाणं, मण समियाणं, वय-समियाणं, काय-समियाणं, मण-गुत्ति

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