Book Title: Jivan Shreyaskar Pathmala
Author(s): Kesharben Amrutlal Zaveri
Publisher: Kesharben Amrutlal Zaveri
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२३८]
[ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला .
अणंता पजवा, परित्ता तसा, अणता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपरणत्ता भावा आघविज्जति, पएणविज्जति परूविज्जति, दसिज्जति, निदसिजति, उवदंसिज्जति, से एवं आया एवं नाया एवं विण्ण या एवं चरण करणपरूवणा आघविजइ, से त्तं पण्हावागरणाई १० ।। सू० ॥ ५५ ।।
से किं तं विवागसुयं ? विवाग सुए ण तुकडदुक्कडाण कम्माणं फलविवागे अाघविजइ । तत्थ णं दस दुद्दविवागा, दस सुहविवागा । से किं तं दहविवागा ? दुहविवागेसु णं दुह निवागारमा नगराई उजाणाई वणसंडाई बेश्याई समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धाबरिया धम्मक हायो इहलोहयपरलोइया इढिविसेसा. निरयगमाई, संसारभवपवंचा दुह परंपराओ, दुकुलपच्चायाइरो, दुल्लहवोहियत्त श्राघविजइ; से त्त दुह विवागा । से किं तं सुहविवागा ? सुहविवागेसु णं सुहविवागाणं नगराई, उज्जाणाई वणसंडाई चेइयाई: समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्य जाओ, परियागा, सुयपरिग्गहा, तवोक्हाणाई,संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमगाई, सुहपरंपरात्रो, सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियाओ, आघविज्जति । विवागसुयस्य णं परित्ता वायणा, संखेजा अणुओगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखजाओ निज्जुत्तीओ, संखिजानो संगहणी ग्रो, संखिजारो पडिवत्तीओ । से गं अंगठ्ठयाए इक्कारसमे अंगे, दो सुयक्खंधा, वीसं अज्झयणा, वीसं उद्देसण काला, वीसं समुद्देसणकाला, संखिजाइं पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेजा अक्खरा, अशंता गमा, अता पजवा, परित्ता तसा, अता थावरा, सासय.

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