Book Title: Jivan Shreyaskar Pathmala
Author(s): Kesharben Amrutlal Zaveri
Publisher: Kesharben Amrutlal Zaveri
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श्रीअणुत्तरोववाइयसूत्र ]
[२५३
एवं वलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय दसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अयमढे पराणत्ते, मासियाए संलेह. णाए दोसुवि वग्गेसु । त्ति बेमि ॥
॥ बीओ बग्गो समत्तो॥
॥ तृतीय--वर्ग ॥ जइ णं भन्ते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसा दोवस्त वग्गस्स अयम? पराणत्ते; तच्चस्स भन्ते ! वग्गस्त अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्टे पएणत्ते ? ॥ १ ॥
एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पराणत्ता तंजहा
धरणे य, सुनक्खत्ते य, इसिदासे य, आहिते । पेल्लए, रामपुत्ते य, चन्दिमा, पिटिमाइ य ॥ १॥ पेढालपुत्ते अणगारे, नवमे पोट्टिले इ य । वेहल्ले, दसमे वुत्ते, इमे य दस आहिया ।।२।।
जइ णं भन्ते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसा तञ्चस्स वग्गस्ल दस ज्झयणा पराणत्ता, पढमस्स णं भन्ते ! अझयणस्स समणेणं जाव संपत्ते के अटे पराणते? ॥३॥
एवं खलु जम्बू ! तेणं काले ते समएणं काकन्दी नाम नयरी होत्था, रिद्धिस्थिमियसमिद्धा, सहस्संबवणे उजाणे सव्वोउयपुप्फफलसमिद्धे जाव पासाइए, जियसत्तू राया ॥४॥

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