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चतुर्थ अध्याय / 73 मुनि या गुरु की पत्नी में स्थित हो अथवा बहुनायक विषयक हो अथवा नायक - नायिका दोनों में न रहती हो अथवा प्रतिनायक में स्थित हो इसी प्रकार अधम पात्र अथवा तिर्यग् - योनि सम्बन्धी रति हो तो शृङ्गार में अनौचित्य होगा । इसी प्रकार रौद्र रस में गुरु आदि महान् व्यक्तियों में कोप की स्थिति हो तो अनौचित्य होगा । शान्त रस में शम गुण हीन अधम जातिगत शान्त रस का वर्णन हो तो भी अनौचित्य है, क्योंकि ऐसे पात्र में शमतत्त्व ज्ञान सम्भव नहीं है । गुरुपिता आदि जिसमें आलम्बन हों ऐसे हास्य रस में भी अनौचित्य ही भासमान होगा क्योंकि ऐसा आलम्बन धर्मशास्त्र से निषिद्ध होने के कारण अयोग्य माना गया है । ऐसे ही वीर रस में ब्राह्मण वध एवं पिता आदि का वध तथा अनाधिकारी के प्रति दान दया का वर्णन एवं कृत्रिम धर्म के प्रति उत्साह प्रगट करना यह अनौचित्य होगा । क्योंकि इस प्रकार का उत्साह प्रगट करना यह अनौचित्य होगा। क्योंकि इस प्रकार का उत्साह धर्मशास्त्र से निषिद्ध होने के कारण आलम्बन अयोग्य होता है । ऐसे ही अधम पात्र में उत्साह के वर्णन पर भी अनौचित्य है । ऐसे ही भयानक रस के निरूपण में उत्तम पात्र में भय की स्थिति दिखाने पर अनौचित्य है क्योंकि ऐसे पात्र में भय की स्थिति सम्भव न होने से तद्विषयक आलम्बन अयोग्य होगा।
वेश्या आदि में लज्जा का वर्णन एवं अनुराग आदि विषय दिखाने पर भावाभास होगा। इसी प्रकार अनुचित चिन्ता दिखाने पर भावाभास है, जिसका उदाहरण आचार्य मम्मट ने सीता को लक्ष्य कर रावण की उक्तियों में दिखाया है । यहाँ सीता का अनुराग रावण में नहीं है तथापि रावण द्वारा सीता की प्राप्ति हेतु अनुचित विषय की चिन्ता को व्यक्त करने से अनुचित रति है । यथा -
"राकासुधाकरमुखी तरलायताक्षी सा स्मेरयौवनतरङ्गितविभ्रमाङ्गी । तत्किं करोमि विदधे कयमत्र मैत्री तत्स्वीकृतिव्यतिकरे क इवाभ्युपायः ॥
- काव्य प्रकाश चतुर्थ उल्लास जयोदय महाकाव्य में रस - विमर्श ब्रह्मचारी पण्डित भूरामल जी शास्त्री प्रणीत जयोदय महाकाव्य 28 सर्गों में निबद्ध है उसमें प्रायः सभी रसों का सन्निवेश हुआ है । शृङ्गार रस -
जयकुमार का सुलोचना के साथ प्रेममयी वार्ता के विस्तृत वर्णन प्रसङ्ग में यह ज्ञात होता है कि वह सब प्रकार से जयकुमार के लिये प्रिय बनी। देवाराधन के समय वही सभी सामग्रियों को देती थी । प्रजाहित के हेतु जब वह पथिक बनता था तो सुलोचना उचित सम्मति देती थी । जगत् में प्रकाश के लिये जब जय दीपक होते थे तो सुलोचना समीप में आभा बनकर शोभा देती थी । दीपक और आभा का सम्बन्ध शाश्वत है । सुलोचना और जयकुमार