Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kailash Pandey
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra

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Page 246
________________ 214/जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन है कि जीवन में शिवत्व ही सब कुछ है और वह भोग के अनन्तर ही उपलब्ध हो सकता है । यह सब कवि की विशुद्ध एवं विशद दृष्टि के परिचायक हैं । सम्पूर्ण महाकाव्य में जैन धर्मानुराग और जैन दर्शन के सिद्धान्तों का भी सम्यक् प्रतिपादन किया गया है । इस प्रकार 'जयोदय' महाकाव्य के पूर्ण लक्षणों से मण्डित एवं उत्कृष्ट काव्य है, जिसके माध्यम से कवि ने लोक हित कामना को सम्यक् अभिव्यक्ति दी है । रस. गुण, अलङ्कार, ध्वनि, रीति, छन्दोयोजना की दृष्टि से भी यह एक महनीय काव्य है । इन समस्त काव्यतत्त्वों के प्रति कवि सतत जागरूक है । यही कारण है कि प्रसङ्गगानुरूप ही काव्य में रसादि का सम्यक् विनिवेश हुआ है । काव्य में गीतों का प्रयोग कवि की अपनी मौलिक और अभिनव युक्ति है। तुलनात्मक दृष्टि से इस महाकाव्य को हम अलङ्कत शैली के अन्तर्गत रख सकते हैं । काव्य का प्रारम्भ ही नैषध की पद्धति पर हुआ है इसे हम पूर्व के पृष्ठों में प्रतिपादित कर चुके हैं। अलङ्कत शैली में होने पर भी हम इसे भारवि-माघ की श्रेणी में भी नहीं ले जा सकते । काव्य की दुरुह तथा क्लिष्ट शब्द योजना पाठक को पर्याप्त कठिनाई प्रदान करती है । अतः न तो यहाँ भारवि का पर्याप्त अर्थ गाम्भीर्य है और न माघ का प्रचण्ड पाण्डित्य। माघ का पाण्डित्य प्रचण्ड होने पर भी ग्राह्य हो जाता है । पर प्रकृत महाकाव्य के यशस्वी कवि का पाण्डित्य सात्त्विक दुरुहता में ही अधिक रमता प्रतीत होता है । जहाँ तक श्री हर्ष का प्रश्न है । कवि ने काव्य का प्रारम्भ तो उसी पद्धति से किया है, सर्गों का अवसान भी लगभग वैसा ही है, परन्तु नैषधकार का पद सौन्दर्य यहाँ अलभ्य है । कालिदास के समीप इसे ले जाने का दुस्साहस ही नहीं किया जा सकता । काव्यगत दोषों के प्रति मैंने उपेक्षाभाव रखा है । दोष-दर्शन अच्छी बात नहीं । कवि भूरामल जी का पाडित्य अवश्यमेव स्तुत्य है । उन्हें जैन धर्म और दर्शन का पूर्ण ज्ञान है। पुराण से प्राप्त कथा को अलङ्कत शैली में निबद्ध करने में वह पूर्ण समर्थ रहे हैं । समस्त का अनुशीलन करने पर जैन धर्म के प्रति सहज अनुराग हो जाना स्वाभाविक है । यह काव्य ही जैन-धर्म की प्रशस्ति के लिये है । अत: जैन समाज की यह एक उत्तम निधि है । यथा स्थान वैदिक पद्धति का अनुपालन होने से वैदिक धर्म पर भी कवि की यथेष्ट श्रद्धा दीख पड़ती है। उदाहरणार्थ, जयकुमार की सन्ध्योपासना, वैदिक रीति से पाणिग्रहण आदि को लिया जा सकता है। अतः जैन-प्रधान होने पर भी 'जयोदय महाकाव्य' इतर धर्मो को भी शिवोदय की ओर ले जाने में पूर्ण समर्थ है । संक्षेप में ही किन्तु सार रूप में मैंने यहाँ जयोदय का समालोचन किया है । समग्र का आनन्द तो काव्य से ही सम्भव है । आशा है सुधी वर्ग इसे आदरपूर्वक अपनायेगा । शुभम् स्यात् । 000 ॥ ॐ महावीराय नमः ॥

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