Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kailash Pandey
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra

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Page 244
________________ 9999999999 उपसहार श्रीमान् श्रेष्ठि चतुर्भुजः स सुषुवे भूरामलोपाह्वयं, वाणीभूषणमस्त्रियं घृतवरी देवी च यं धोचयम् । तत्काव्यं लसतास्वयंवरविधिश्रीलोचनाया जय - राजस्याभ्युदयं दधत् वसुदृगित्याख्यं च सर्ग जयत् ॥ लोक-कल्याण की भावना से ही बर्द्धमान भगवान महावीर ने जैन धर्म को बर्द्धमान किया । अर्हन् या अरिहन्त, 'अर्हन्नित्यथ जैन शासनरता' के इस सम्प्रदाय ने लोगों को हिंसा से दूर करने के लिये अथक प्रयास किया। जिसमें अनेकों महापुरुष एवं महाकवियों ने अपना हाथ बटाया। इन महापुरुषों में भरत, जयकुमार प्रभृति को गिना जाता है जिनके चरित्र आज भी अनुकरणीय माने जाते हैं। ब्रह्मधारी भूरामल शास्त्री, 'आचार्य श्री ज्ञानसागर जी', इसी जैन सम्प्रदाय के वीतराग महात्मा एवं प्रमुख महाकवि भी हैं । जिनकी अनेक कृतियाँ हैं। इनका उल्लेख मैंने प्रबन्ध के प्रथम अध्याय में कर दिया है । शास्त्री जी के ग्रन्थमाला में 'जयोदय महाकाव्य' अपना असाधारण स्थान रखता है। यह महाकाव्य अट्ठाईस सर्गों में रचा गया है । महाकाव्य के प्राम्भ में भारतवर्ष के आर्य सम्राट चक्रवर्ती भरत के प्रधान सेनापति एवं हस्तिनापुर के अधिपति जयकुमार के विलक्षण पराक्रम, वैभव, कानन क्रीडा आदि का वर्णन, मुनि राज का दर्शन तथा कर्त्तव्य पथ का उपदेश आदि वर्णित है। महाराज जय के उपदेष्टा मुनिराज ने धार्मिक गृहस्थ जीवन, उसकी व्यावहारिकता के साथ उनकी उपयोगिता भी अभिव्यक्त की है । काव्य के नायक जयकुमार का जीवन सदाचार सम्पन्न तथा अत्यन्त प्रभावशाली है । वही इस काव्य का नायक है । महासत्त्वादि गुण सम्पन्न होने के कारण उसे हम धोरीदात्त की कोटि में रख सकते हैं । अन्ततः विरक्त हो जाने के कारण उसके धीर प्रशान्त की बात उठाई जा सकती है । किन्तु जीवन की अन्तिम अवस्था में वैराग्य धारण भी धीरोदात्त का ही परिचायक है । अन्यथा युधिष्ठिर आदि को भी धीर प्रशान्त कहना पड़ेगा। धीरोदात्त नायक सम्पन्न महाकाव्य का अङ्गीरस वीर कहा गया है । प्रकृत काव्य में मैंने शान्त को ही अङ्गीरस की मान्यता दी है । धीरोदात्त और शान्त में शास्त्रीय विरोध अवश्य है पर कविगत भावना तथा पर्यवसान को दृष्टि में रखकर ही मैंने शान्त को प्रधान माना है। सम्पूर्ण महाकाव्य उसी के लिये समर्पित है । अतः शास्त्र-विरोध होने पर भी विद्वज्जन मेरी धृष्टता को उतना महत्व नहीं देगें, की पूर्ण आशा है । प्रकृत महाकाव्य, महाकाव्यत्व के समस्त गुणों से संवलित है । इस बात की चर्चा

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