Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kailash Pandey
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra

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Page 257
________________ जयोदय महाकाव्य में प्रस्तुत स्थान / 225 जीव (2) अजीव (3) पुण्य (4) पाप (5) आश्रव (6) संवर (7) बंध (8) निर्जरा और (9),मोक्ष इन नव तत्त्वों को माना है। उत्तराध्ययन सूत्र में उन्हें 'तथ्य' कहा गया है । ठांणांग सूत्र में इनकी संज्ञा 'सद्भाव' दी गयी है । लोक प्रकाश में भी व्यन्तर के प्रकार को लिखा है। अर्हत् : ये जैनों के ईश्वर हैं । अर्हत् का स्वरूप हेमचन्द्र शूरि ने अपने 'आप्तनिश्चयालङ्कार' ग्रन्थ में लिखा है "सर्वज्ञो जितरागादि दोषस्त्रैलोक्यपूजितः । यथास्थितार्थ वादी च देवोऽर्हन् परमेश्वरः ॥" इति हेमचन्द्र का समय दस सौ अट्ठासी से ग्यारह सौ बहत्तर ईसवी है। इनका प्राणमिमांसा, शब्दानुशासन सुप्रसिद्ध ग्रन्थ है । सर्वोन्मुखी प्रतिभा होने के कारण इनको कलिकाल सर्वज्ञ की उपाधि मिली है। . णमोकार मन्त्र : यह मन्त्र प्रायः जैन मत में कार्य की निर्विघ्न समाप्ति हेतु जपा जाता है । सुलोचना गंगा में जलजन्तु के द्वारा जयकुमार के गज को पकड़ लेने के बाद किंकर्तव्यविमूढ़ सुलोचना ने जयकुमार को णमोकार मन्त्र के जाप से ही मुक्त कराया था । वह मन्त्र अवधेयार्थ है "णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं । णमो उवज्झायाणं, णमो लोएसब्बसाहूणं ॥" जिनरत्न त्रय : त्रि रत्न शब्द से सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्रय लिया गया है । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्रय ये तीनों मिलकर मोक्ष के मार्ग अर्थात मोक्ष की प्राप्ति के उपाय सम्यक् दर्शनःसम्यग्दर्शन का लक्षण इस प्रकार दिया गया है "तत्त्वार्थत्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्॥16 अर्थात् वस्तु के स्वरूप सहित जीवादि पदार्थों का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है । सम्यग्ज्ञान : परोपदेश निक्षमात्मस्वरूपं निसर्गः व्याख्यानादि रूप परोपदेश जनित ज्ञानमधिगमः सम्यक् ज्ञानमिति । अन्य लोगों ने भी कहा है "यथाऽवस्थित तत्वानां संक्षेपात विस्तरणे वा । योऽबोधस्तमत्राहुः सम्यग्ज्ञानमनिषिणः ॥" इति सम्यक् ज्ञान पाँच प्रकार का बताया गया है (1) मति, (2) श्रुति (3) अवधि, (4) मनः पर्यय और केवलज्ञान” ।

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