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जयोदय महाकाव्य में प्रस्तुत स्थान /221 जिनसेन :
महाकवि श्री भूरामल जी ने महाकाव्य में इन्हें गुरु रूप से प्रणाम किया है । गुणभद्र :
इन्हें भी प्रणाम किया गया है । आचार्य जिनसेन एवं गुणभद्र का परिचय विस्तृत रूप से शोध-प्रबन्ध के द्वितीय अध्याय में द्रष्टव्य है । समन्तभद्र :
महाकवि ने इन्हें काव्य गुरु स्थान दिया है । विद्यानन्द :
शास्त्री जी ने इन्हें भी नमन किया है। शिवायन : - प्रणाम की लड़ी में यह भी गण्य हैं । सुनमि :
एक विद्याधर राजा । विनमि :
यह भी एक विद्याधर राजा थे । महेन्द्र :
महेन्द्र दत्त नामक एक कंचुकी । विद्यादेवी :
सुलोचना के स्वयंवर में आगत राजाओं का परिचय कराने वाली ।
देव :
जयकुमार का पूर्वभव, जब वह देव लोक में जन्मा । उस भव में सुलोचना. महादेवी नाम से उनकी पत्नी थी। महादेवी :
सुलोचना के पूर्वभव का नाम जब वह देव लोक में जन्मी। सुकान्तः
जय के चौथे पूर्वभव का नाम जब वह वैश्य थे और सुलोचना रतिवेगा नाम से उनकी पत्नी थी।