Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kailash Pandey
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra

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Page 250
________________ 218/ जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन से पच्चीस योजन ऊँचा है। इसका समुचित वर्णन आदि पुराण के प्रथम भाग में हैं । जयोदय महाकाव्य में प्रस्तुत पात्र ऋषभदेव : . ऋषभदेव नाभिराज के पुत्र थे । इनकी माता का नाम मरुदेवी मिलता है। वैदिक ग्रन्थों में भी ऋषभदेव की चर्चा मिलती है और ये नाभि के पुत्र बताये गये हैं । यद्यपि श्रीमद्भागवत में इनकी माता का नाम सुदेवी कहा गया है पर अग्निपुराण और कूर्मपुराण में इनकी माता का नाम मरुदेवी मिलता है । यह 'ऋषभदेव वर्तमान चौबीसी के प्रथम तीर्थङ्कर हैं । ऋषभदेव के दो नाम शास्त्रों में ऋषभ' और 'वृषभ' आते हैं । त्रिषटि शलाका पुरुष चरित्र में कहा गया है कि उनके जंधे में ऋषभ का चिह्न था इसलिये उनका नाम ऋषभदेव' पड़ा । आदि पुराण में बैल के चिह्न से युक्त होने के कारण 'वृषभ' कहा गया है । आदि पुराण (2433) में उन्हें वृषभध्वज भी कहा गया है । इसकी टीका करते हुए पन्नालाल जी ने कहा है -'वृषभ चिह्न से युक्त' हैं । हिन्दुओं में ऋषभदेव बड़े लोकप्रिय व्यक्ति रहे हैं । वैष्णव एवं शैव दोनों ही परस्पर विरोधी सम्प्रदायों ने उन्हें क्रमशः विष्णु एवं शिव का अवतार माना है । हिन्दू पुराणों में वर्णित ऋषभ देव निश्चित रूप से जैन ग्रन्थों में वर्णित ऋषभदेव हैं। इनका जन्म चैत्र मास, कृष्ण पक्ष नवमी तिथि को हुआ था । इनकी दो पत्नियाँ थीं। पहली यशस्वती रानी से भरत को लेकर सौ पुत्र एवं ब्राह्मी नाम की पुत्री हुई, भरत के नाम पर ही भारत नाम पड़ा । दूसरी रानी सुन्दरी से बाहुबल नामक एक पुत्र और सुन्दरी नाम की एक पुत्री हुई । चिरकाल तक राज्योपभोग करते हुए वृषभदेव भरत का राज्याभिषेक एवं अन्यों को भी यथोचित राज्य-पाट देकर चैत्र कृष्ण नवमी के दिन सांयकाल के समय दीक्षा धारण कर ली । भगवान् ऋषभदेव को छह माह का योग लेकर शिलापट्ट पर आसीन होते ही मनः पर्यय ज्ञान प्राप्त हो गया । ततः ऋषभदेव को फाल्गुन कृष्ण एकादशी के दिन केवल ज्ञान की उत्पत्ति हुई । ततः भगवान् नाना प्रकार के स्थानों का विहार करते हुए कैलास पर्वत पर पहुँच कर निर्वाण को प्राप्त हुए । इस प्रकार ऋषभदेव का संक्षिप्त दिग्दर्शन मात्र ही प्रस्तुत किया गया है। अकम्पन : अकम्पन काशी का राजा शत्रुओं को कम्पित कर देने वाला होने से उसका नाम अकम्पन पड़ा। भगवान् ऋषभदेव से श्रीधर नाम पाकर अकम्पन नाथ वंश का नायक हुआ था । उसकी पत्नी का नाम सुप्रभा था। उसे हेमाङ्गदादि हजार पुत्र उत्पन्न हुए थे तथा सुलोचना एवं लक्ष्मीवती नाम की दो कन्याएँ थीं। ____उनकी पुत्री सुलोचना के स्वयंवर में भरत का पुत्र अर्ककीर्ति और सामप्रभ पुत्र जयकुमार दोनों आये थे । सुलोचना ने जयकुमार को वरण किया। जिस विवाद को लेकर जयकुमार

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