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76/जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन
इसमें सात्त्विक स्वेदोद्गम की गर्मी के कारण उत्पन्न हुआ समझना आलम्बन विभाव है एवं पंखे का संचालन उद्दीपन है । मुख को ऊपर करना आदि अनुभाव है । मनोवृत्ति को छिपाना व्यभिचारी भाव है । इस प्रकार हास्य स्थायी भाव होने से वह युवती उपहास का पात्र बनी । इस प्रकार हास्य रस का निदर्शन रम्य है।
इस तरह से अन्य स्थलों में भी हास्य रस का अभिव्यंजन द्रष्टव्य है । उदाहरणान्तर"निक्षिप्तकिञ्चित्प्रकरं निवासं विस्मृत्य गच्छन्नितरेतरेषु । युनां स हासैक निमित्तमास्तावशिष्टभारोद्वहनाकुलस्मन् ॥44 ..
जिस समय गंगा के किनारे जयकुमार का सैनिक शिविर बन रहा था उसमें सैनिक गण स्थानों का चयनकर निवास हेतु प्रयत्न कर रहे थे। उसी समय एक सैनिक शीघ्रता के साथ एक तम्बू में अपने कुछ सामानों को रखकर पुनः और सामान लेकर उस तम्बू को ढुंढते हुए बोझों से बोझिल होकर इधर-उधर भटकने लगा । इस कारण वह अन्य तरुण सैनिकों के उपहास का कारण बन गया । ___यहाँ पर पुनः सामान लेकर भ्रान्त व्यक्ति का भ्रमण आलम्बन विभाव है तथा इधरउधर भटकना एवं आकुलता उद्दीपन विभाव है । आकुल होना अनुभाव है । श्रम अदि व्यभिचारी भाव है । हास स्थायी भाव होने से हास्य रस निष्पन्न होता है । करुण रस -
महाकवि प्रणीत जयोदय महाकाव्य इस रस से अछूता नहीं है । यथा"मृताङ्गनानेत्रपयःप्रवाहो मदाम्भसा वा करिणां तदाहो । योऽभूच्चयोऽदोऽस्ति ममानुमानमुद्गीयतेऽसौ यमुनाभिधानः ॥':45
उस युद्ध भूमि में मरे हुए शत्रुवीरों की स्त्रियों के अश्रुजल प्रवाह अथवा हाथियों का मदजल समूह का प्रवाह बह रहा था वह ऐसा प्रतीत होता था मानो आज भी वही यमुना के नाम से कहा जाता है । ___यहाँ पर मृत शत्रु आलम्बन विभाव है उनका दर्शन उद्दीपन है उनकी पत्नियों के नेत्र से अश्रु प्रवाह का निकलना अनुभाव है । आक्षिप्त चिन्ता व्यभिचारी भाव है और शोक स्थायी भाव होने से करुण रस निष्पन्न हो रहा है । रौद्र रस -
रौद्र रस के वर्णन में सिद्धहस्त महाकवि का महाकाव्य जयोदय इस रस से वंचित नहीं है । सप्तम सर्ग में माल्यार्पण देखकर अर्ककीर्ति क्रुद्ध होकर युद्ध की घोषणा करता है । मन्त्रियों द्वारा समझाये जाने के प्रसङ्ग में इस रस की मनोरमता देखी जा सकती है -
"क्षमायामस्तु विश्रामः श्रमणानां तु भो गुण ।