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अष्ठम अध्याय/201
"गिरे त्यमृतसारिण्या श्रीवनञ्चानुकुर्वतः । बभूव भूपतेः क्षेत्रं सकलं चाङ्कराङ्कितम् ॥25 इसके अतिरिक्त अनेकशः श्लोक प्रकृत महाकाव्य में अवलोकनीय हैं । आर्या :
जिसके प्रथम तृतीय चरण में द्वादश, द्वितीय में अट्ठारह और चतुर्थ में पन्द्रह मात्रा हो उसे आर्या छन्द कहते हैं । इसके बहुशः उदाहरण प्राप्त हैं । जैसे - ___"कण्टकित इवाकृष्टश्चक्षुर्दिक्षु क्षिपञ्छनैरचलत् ।
छायाछादितसरणौ गुणेन विपिनश्रियः श्रीमान् ॥26 द्रुतविलम्बितः
जिस छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमश: नगण, दो भगण और रगण होते हैं उसे द्रुतविलम्बित' छन्द कहते हैं । पाद में यति होता है । उदाहरणर्थ इस वृत्त में परिगुम्फित एक श्लोक दर्शनीय
स
"कुसुमसत्कुलतः पदपङ्कजद्वयममुष्य समेत्य शिलोमुखाः । स्वकृतदोषविशुद्धिविधित्सया समुपभान्ति लवा अथवागसः ॥128
यह छन्द इस सर्ग के उक्त श्लोक से लेकर सौ श्लोक पर्यन्त दिखाया गया है । पुनः सर्ग की समाप्ति शार्दूलविक्रीडित छन्द से की गयी है । शार्दूलविक्रीडित :
जिसमें मगण, सगण, जगण, सगण और दो तगण तथा अन्त में एक गुरु हो एवं बारह तथा सात पर यति हो, वह 'शार्दूलविक्रीडित' नामक छन्द कहलाता है । प्रत्येक सर्ग की समाप्ति इसी छन्द से की गयी है, जिसका एक उदाहरण प्रस्तुत है :
"श्रीमान् श्रेष्ठि चतुर्भुजः स सुषुवे भूरामलोपाह्वयं, वाणीभूषणमस्त्रियं धृतवरीदेवी च यं धीचयं ॥ तेनास्मिन्नुदिते
जयोदयनयप्रोद्धारसाराश्रितः, नानानव्यनिवेदनातिशयवान् सर्गोऽयमादिर्गतः ॥30 रथोद्धता : ___जयोदय महाकाव्य का दूसरा सर्ग रथोद्धता छन्द से प्रारम्भ होकर एक सौ छब्बीस श्लोक पर्यन्त तक चलता है । जिस छन्द के एक पाद में क्रमशः रगण से परे नगण, रगण, एक लघु और एक गुरु होते हैं, वह रथोद्धता नामक छन्द हैं' । यथा -
"संहितायमनुयन् दिने दिने संहिताय जगतो जिनेशिने । संहिताञ्जलिरहं किलाधुना संहितार्थमनुवच्मि गेहिनाम् ॥'132